गजानंद प्रसाद देवांगन जी के कविता

चूनी के अंगाकर
कनकी के माढ़ ।
खा के गुजारत हे
जिनगी ल ठाढ़ ।

कभू कभू चटनी बासी
तिहार बार के भात ।
बिचारा गरीब के
जस दिन तस रात ।

चिरहा अंगरखा
कनिहा म फरिया ।
तोप ढांक के रहत
छितका कस कुरिया ।

उत्ती के लाली अउ
बुड़ती के पिंवरी ।
दूनो गरीब के
डेरौठी के ढिबरी ।

गीता पुरान होगे
करमा ददरिया ।
गंगा गदवरी कस
पछीना के तरिया ।

कन्हार मटासी ल
खनत अउ कोड़त ।
धरती अगास ल
एके म जोड़त ।

फेर तरी ले भोंभरा
ऊप्पर ले घाम ।
भूंजत होरा कस
गजब हे राम ।

तिरवर मंझनिया के
झकोरत झांझ ।
तरसुनहा के पेट ल
दंदोरत हे सांझ ।

टूटगे गांधी के
सुराजी सपना ।
जियत मरत ले
रोना अउ कलपना ।

दया मया सेवा
रख अपन नसीब ।
दूसर बर सरग
बनावत हे गरीब ।

गजानंद प्रसाद देवांगन

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3 Thoughts to “गजानंद प्रसाद देवांगन जी के कविता”

  1. Mahendra Dewangan Maati

    गजानंद प्रसाद देवांगन जी के सब कविता ह अंतस ल छू देथे |
    कवि हिरदय ,सरल स्वभाव अऊ मानस मर्मज्ञ गजानंद जी ल श्रद्धा सुमन अरपित करत हों |
    ओम शांति |

  2. सुनिल शर्मा

    अड़बड़ सुग्घर रचना हे शब्द कमती हवय एखर बरनन बर

  3. द्रोण कुमार सार्वा

    छत्तीसगढ़ के मनखे के भाखा ल अपन अन्तस् के आरो कस समटाय ये रचना बर सुघ्घर मय दुलार हमर बड़का सियान रामचरित के गुणी अऊ ज्ञान के भण्डार देवांगन जी के अइसने आरो हमला मिलट रही।

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