चूनी के अंगाकर
कनकी के माढ़ ।
खा के गुजारत हे
जिनगी ल ठाढ़ ।
कभू कभू चटनी बासी
तिहार बार के भात ।
बिचारा गरीब के
जस दिन तस रात ।
चिरहा अंगरखा
कनिहा म फरिया ।
तोप ढांक के रहत
छितका कस कुरिया ।
उत्ती के लाली अउ
बुड़ती के पिंवरी ।
दूनो गरीब के
डेरौठी के ढिबरी ।
गीता पुरान होगे
करमा ददरिया ।
गंगा गदवरी कस
पछीना के तरिया ।
कन्हार मटासी ल
खनत अउ कोड़त ।
धरती अगास ल
एके म जोड़त ।
फेर तरी ले भोंभरा
ऊप्पर ले घाम ।
भूंजत होरा कस
गजब हे राम ।
तिरवर मंझनिया के
झकोरत झांझ ।
तरसुनहा के पेट ल
दंदोरत हे सांझ ।
टूटगे गांधी के
सुराजी सपना ।
जियत मरत ले
रोना अउ कलपना ।
दया मया सेवा
रख अपन नसीब ।
दूसर बर सरग
बनावत हे गरीब ।
गजानंद प्रसाद देवांगन
गजानंद प्रसाद देवांगन जी के सब कविता ह अंतस ल छू देथे |
कवि हिरदय ,सरल स्वभाव अऊ मानस मर्मज्ञ गजानंद जी ल श्रद्धा सुमन अरपित करत हों |
ओम शांति |
अड़बड़ सुग्घर रचना हे शब्द कमती हवय एखर बरनन बर
छत्तीसगढ़ के मनखे के भाखा ल अपन अन्तस् के आरो कस समटाय ये रचना बर सुघ्घर मय दुलार हमर बड़का सियान रामचरित के गुणी अऊ ज्ञान के भण्डार देवांगन जी के अइसने आरो हमला मिलट रही।